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रंगों के बीना जीवन कितना नीरस हो सकता है। रंगों का हमारे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि कपड़े हों या घरों की दीवारों के रंग, इनके बारे में हम घंटों सोचते हैं और चुनाव करते हैं। तो क्या रंगों का हमारे मूड से भी कोई नाता है? क्या रंग हमारे मूड में बदलाव कर सकते हैं? अगर व्यवहारिक जीवन की बात करें तो डॉक्टर सर्जरी के दौरान सफेद रंग के कपड़े, पट्टी और बैंडेज का इस्तेमाल करते हैं ताकि एक सफ़ाई का भाव आए, वहीं कुछ जेलों के कमरों की दीवारें गुलाबी रंग से पुती होती हैं ताकि कैदियों को एधिक गुस्सा न आए। इससे तो ऐसा लगता है कि हम ये जानते हैं कि कौंन सा रंग हमारे दिमाग पर क्या काम करता है। अगर वैज्ञानिक शोध के नतीजों को देखें तो इनके परिणाम मिले-जुले हैं। तो चलिये जानने की कोशिश करते हैं कि किस रंग का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है -

रंग का हमारे व्यवहार पर प्रभाव

रंगों के हमारे ऊपर प्रभाव को समझने के लिये हमे समझना होगा कि ये हमारे पालन-पोषण (कंडिशनिंग) पर निर्भर करता है। मसलन यदि हम किसी विशेष रंग के संपर्क में ज्यादा रहे हों तो हमारा व्यवहार उस विशेष रंग से प्रभावित होने लगता है। उदाहरण के लिये स्कूल में जब अध्यापक हमारी गलतियों को लाल रंग की स्याही से अंकित करते रहे हैं तो लाल को हम खतरे से जोड़कर दखते हैं। वहीं अधिकांश विषेले फल भी लाल होते हैं। इसी तरह नीले रंग को सौम्यता से जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि समुद्र और आकाश का विस्तार सौम्यता और शांति का प्रतिक होते हैं और दोनों ही नीले रंग के होते हैं। हालांकि इसके अपवाद भी हैं, जैसे अध्यापक स्कूलों में 'वेल डन' भी लाल रंग से लिखते हैं और रास्पबेरी फल भी लाल ही होता है। तो जाहिर सी बात है कि अलग अलग लोग अलग अलग रंगों से विभिन्न लगाव महसूस करते हैं, लेकिन इसका आपके व्यवहार पर असर एक जुदा मसला है। 

शोध से आए परिणाम

साल 2009 में ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इस विषय पर एक शोध हुआ। शोधकर्ताओं ने नीले, लाल और एक न्यूट्रल रंग के कंप्यूटर स्क्रीन का उपयोग किया और उन स्क्रीनों पर लोगों से अलग-अलग तरह के काम कराए। लाल रंग की स्क्रीन पर लोगों ने मेमोरी, प्रूफ़ रीडिंग, डिटेल हासिल करने संबंधी टॉस्क को बेहतर ढंग से पूरा किया। वहीं नीली स्क्रीन वाले लोगों ने क्रिएटिव कामों को बेहतर ढंग से किया। शोधकर्ताओं के मुताबिक लाल रंग की स्क्रीन के साथ लोगों ने डर के चलते सावधानी पूर्वक काम किया। 

विरोधाभास को नकारा नहीं जा सकता है

जबकि नीले रंग वाली स्क्रीन पर काम करते समय लोगों ने कहीं ज्यादा रचनात्मकता ठंग से काम किया। शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध में पाया कि रंग और व्यवहार का संबंध काफी हद तक दिमाग से संचालित होता है। हालांकि इन नतीजों के व्यवहारिक प्रयोग पर शोधकर्ताओं की टीम एकमत नहीं है। मसलन, क्या टास्क को देखकर कमरे का रंग बदलवाना चाहिए? नई ड्रग्स के साइडइफेक्ट की जांच कर रही टीम के लिए दूसरे रंग की दीवार होनी चाहिए और क्रिएटिव ब्रेनस्ट्रॉमिंग के लिए नीला रंग? तो व्यवहारिक तौर पर ये मुम्किन होता नहीं दिखता। 

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